74शियत की तारीख़
हमारा मानना है कि शियत की इबतदा पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के ज़माने में आपके अक़वाल से हुई। हमारे पास इस क़ौल की बहुत सी सनदें मौजूद हैं।
उन में से एक यह है कि सूरए बय्यिनह की आयत “इन्न अल्लज़ीना आमनू व अमिलु अस्सालिहाति उलाइका हुम ख़ैरु अलबरिय्यह ”[26] यानी जो लोग ईमान लाये और नेक अमल अंजाम दिये वह (अल्लाह की) बेहतरीन मख़लूक़ हैं। के तहत बहुत से मुफ़स्सेरीन ने लिखा है कि पैग़म्बर (स.) ने फ़रमाया कि इस आयत से मुराद अली (अ.) व उन के शिया हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की इस हदीस को जलालुद्दीन सियोति ने अपनी तफ़्सीर “अद्दुर्रु अलमनसूर” ने इब्ने असाकर व जाबिर बिन अब्दुल्लाह के हवाले से नक़्ल किया है कि हम पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की ख़िदमत में थे कि हज़रत अली (अ.) हमारे पास आये जैसे ही पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की नज़र उनके चेहरे पर पड़ी फ़रमाया “व अल्लज़ी नफ़्सी बियदिहि इन्ना हाज़ा व शीअतहु लहुम अलफ़ाइज़ूना यौमा अलक़ियामति।” यानी उसकी क़सम जिसके क़ब्ज़ा-ए-क़ुदरत में मेरी जान है यह और इनके शिया रोज़े क़ियामत कामयाब होने वाले हैं। इसके बाद यह आयत नाज़िल हुई “इन्न अल्लज़ीना आमनू व अमिलु अस्सालिहाति उलाइका हुम ख़ैरु अलबरिय्यह” इस वाक़िये के बाद से हज़रत अली अलैहिस्सलाम जब भी असहाब के मजमे में दाख़िल होते थे तो असहाब कहते थे “जाआ ख़ैरु अलबरिय्यह” यानी अल्लाह की सबसे बेहतर मख़लूक़ आ गई।[27]
इस मतलब को थोड़े से फ़र्क़ के साथ इब्ने अब्बास, अबू बरज़ह, इब्ने मर्दवियह, अतिय्य-ए- औफ़ी ने भी नक़्ल किया है।[28]
इस से मालूम होता है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम से वाबस्ता अफ़राद के लिए पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के ज़माने में ही लफ़्ज़े “शिया” का इस्तेमाल किया जाता था और यह नाम उनको पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने दिया था। उनका यह नाम ख़ुलफ़ा या हुकूमते सफ़वियह के ज़माने में नही पड़ा।
इस के बावुजूद कि हम इस्लाम के तमाम फ़िर्क़ों का एहतेराम करते हैं, उनके साथ एक सफ़ में खड़े हो कर नमाज़ पढ़ते हैं, सब के साथ मिल कर हज करते हैं और इस्लाम के तमाम मुशतरक अहदाफ़ में उनका साथ देते हैं। लेकिन हमारा मानना है कि मकतबे अली अलैहिस्सलाम की कुछ ख़ुसूसियतें हैं और इस मकतब पर पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की ख़ास नज़रे करम रही है इसी लिए हम इस मकतब की पैरवी करते हैं।
कुछ शिया मुख़ालिफ़ गिरोह शियत को अबादुल्लाह इब्ने सबा से मंसूब करने की कोशिश करते हैं हमेशा यह दोहराते रहते हैं कि शिया अब्दुल्लाह इब्ने सबा नामी एक शख़्स के पैरोकार हैं जो अस्ल में एक यहूदी था और बाद में इस्लाम क़बूल कर के मुसलमान बन गया था। यह बहुत अजीब बात है, क्योँ कि शियों की तमाम किताबों को देखने से पता चलता है कि शियत का इस इस मर्द से कभी भी कोई दूर का वास्ता भी नही रहा है। बल्कि इसके बर ख़िलाफ़ शियों की इल्मे रिजाल की तमाम किताबों में अब्दुल्लाह इब्ने सबा के बारे में यह मिलता है कि वह एक गुमराह आदमी था। हमारी कुछ रिवयतों के मुताबिक़ हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने, मुरतद होने के ज़ुर्म में उसके क़त्ल का फ़रमान जारी किया।[29]
इस के अलावा यह कि अब्दुल्लाह इब्ने सबा का अस्ल वुजूद ही मशकूक है। क्योँ कि कुछ मुहक्क़िक़ो का मानना है कि अब्दुल्लाह इब्ने सबा एक अफ़सानवी इंसान है। उसका का वुजूदे खारजी ही नही पाया जाता था चेजाय कि वह शिया मज़हब का बुनयान गुज़ार हो।[30] अगर उसको एक अफ़सानवी इंसान न भी माना जाये तो हमारी नज़र में वह एक गुमराह इंसान था।