41. क़ियामत और शफ़ाअत

سایٹ دفتر حضرت آیة اللہ العظمی ناصر مکارم شیرازی

صفحه کاربران ویژه - خروج
ذخیره کریں
 
हमारे(शियों के)अक़ीदे
42. आलमे बरज़ख 40. सिरात व मिज़ान
41क़ियामत और शफ़ाअत
हमारा अक़ीदह है कि क़ियामत के दिन पैग़म्बर,आइम्मा-ए-मासूमीन और औलिया अल्लाह अल्लाह के इज़्न से कुछ गुनाहगारों की शफ़ाअत करें गे और वह अल्लाह की माफ़ी के मुस्तहक़ क़रार पायें गे। लेकिन याद रखना चाहिए कि यह शफ़ाअत फ़क़त उन लोगों के लिए है जिन्होंनें गुनाहों की ज़्यादती की वजह से अल्लाह और औलिया अल्लाह से अपने राब्ते को क़तअ न किया हो। लिहाज़ा शफ़ाअत बेक़ैदव बन्द नही है बल्कि यह हमारे आमाल व नियत से मरबूत है। “व ला यशफ़उना इल्ला लिमन इरतज़ा”[111] यानी वह फ़क़त उन की शफ़ाअत करें गे जिन की शफ़ाअत से अल्लाह राज़ी होगा।
जैसा कि पहले भी इशारा किया जा चुका है कि “शफ़ाअत”इंसान की तरबीयत का एक तरीक़ा है और गुनाहगारों को गुनाहों से रोक ने व औलिया अल्लाह से राब्ते को क़तअ न होने देने का एक वसीला है। इस के ज़रिये इंसान को पैग़ाम दिया जाता है कि अगर गुनाहों में गिरफ़्तार हो गये हो तो फ़ौरन तौबा कर लो और आइन्दा गुनाह अंजाम न दो।
हमारा यक़ीन है कि “शफ़ाअते उज़मा” का मंसब रसूले अकरम (स.) से मख़सूस हैं और आप के बाद दूसरे तमाम पैग़म्बर व आइम्मा-ए-मासूमीन हत्ता उलमा, शोहदा, मोमेनीने आरिफ़ व कामिल को हक़्क़े शफ़ाअत हासिल है। और इस से भी बढ़ कर यह कि क़ुरआने करीम व आमाले सालेह भी कुछ लोगों की शफ़ाअत करें गे।
इमामे सादिक़ अलैहिस्सलाम एक हदीस में फ़रमाते हैं कि “मा मिन अहदिन मिन अलअव्वलीना व अलआख़ीरीना इल्ला व हुवा यहताजु इला शफ़ाअति मुहम्मद (स.) यौमल क़ियामति।”[112] यानी अव्वलीन और आख़ेरीन में से कोई ऐसा नही है जो रोज़े क़ियामत मुहम्मद (स.)की शफ़ाअत का मोहताज न हो।
कनज़ुल उम्माल में पैग़म्बरे अकरम (स.)की एक हदीस है जिस में आप ने फ़रमाया कि “अश्शुफ़ाआउ ख़मसतुन : ]“अलक़ुरआनु व अर्रहमु व अलअमानतु व नबिय्यु कुम व अहलु बैति नबिय्यि कुम। ”[113] रोज़े क़ियामत पाँच शफ़ीअ होंगे : क़ुरआने करीम,सिलह रहम,अमानत,आप का नबी और आपके नबी के अहले बैत।
हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम एक हदीस में फ़रमाते हैं कि “इज़ काना यौमु अलक़ियामति बअसा अल्लाहु अलआलिमा व अलआबिदा, फ़इज़ा वक़फ़ा बैना यदा अल्लाहि अज़्ज़ा व जल्ला क़ीला लिआबिदि इनतलिक़ इला अलजन्नति,व क़ीला लिलआलिमि क़िफ़ तशफ़अ लिन्नासि बिहुस्नि तादीबिका लहुम।”[114] यानी क़ियामत के दिन अल्लाह आबिद व आलिम को उठाये गा,जब वह अल्लाह की बारगाह में खड़े होंगे तो आबिद से कहा जाये गा कि जन्नत में जाओ ! और आलिम से कहा जाये गा कि ठहरो, तुम ने जो लोगों की सही तरबीयत की है उस की ख़ातिर तुम को यह हक़ है कि तुम लोगों की शफ़ाअत करो।
यह हदीस शफ़ाअत के फलसफ़े की तरफ़ एक लतीफ़ इशारा कर रही है।
42. आलमे बरज़ख 40. सिरात व मिज़ान
12
13
14
15
16
17
18
19
20
Lotus
Mitra
Nazanin
Titr
Tahoma