38. मआद व आमाल नामें

سایٹ دفتر حضرت آیة اللہ العظمی ناصر مکارم شیرازی

صفحه کاربران ویژه - خروج
ذخیره کریں
 
हमारे(शियों के)अक़ीदे
39. क़ियामत में शुहूद व गवाह37. मौत का बाद का अजीब आलम
38मआद व आमाल नामें
हमारा अक़ीदह है कि क़ियामत के दिन हमारे आमाल नामे हमारे हाथों में सौंप दिये जायें गे। नेक लोगों के नामा-ए- आमाल उन के दाहिने हाथ में और गुनाहगारों के नामा-ए आमाल उनके बायें हाथ में दियो जायें गे। जहाँ नेक लोग अपने नामा-ए-आमाल को देख कर ख़ुश होंगे वहीँ गुनाहगार अफ़राद अपने नामा-ए-आमाल को देख कर रनजीदा हों गे। क़ुरआने करीम ने इस को इस तरह बयान फ़रमाया है। “फ़अम्मा मन उतिया किताबहु बियमिनिहि फ़यक़ूलु हाउमु इक़रऊ किताबियहु * इन्नी ज़ननतु अन्नी मुलाक़िन हिसाबियहु * फ़हुवा फ़ी ईशतिर राज़ियतिन* …..व अम्मा मन उतिया किताबहु बिशिमालिहि फ़
यक़ूलु या लयतनी लम ऊता किताबियहु।”[102] यानी जिस को नामा-ए- आमाल दाहिने हाथ में दिया जायेगा वह(ख़ुशी से)सब से कहेगा कि (ऐ अहले महशर) ज़रा मेरा नामा-ए- आमाल तो पढ़ो , मुझे यक़ीन था कि मेरे आमाल का हिसाब मुझे मिल ने वाला है, फिर वह पसंदीदा जिन्दगी में होगा। ........ लेकिन जिसका नामा-ए- आमाल बायें हाथ में दिया जाये गा वह कहेगा कि काश यह नामा-ए-आमाल मुझे ना दिया जाता।
लेकिन यह बात कि नामा-ए-आमाल की नौय्यत क्या होगी ? वह कैसे लिखे जायें गे कि किसी में उस से इंकार करने की जुर्रत न होगी ? यह सब हमारे लिए रौशन नही है। जैसा कि पहले भी इशारा किया जा चुका है कि मआद व क़ियामत में कुछ ऐसी ख़सूसियतें हैं कि जिन के जुज़यात को इस दुनिया में समझना मुश्किल या ग़ैर मुमकिन है। लेकिन कुल्ली तौर पर सब मालूम है और इस से इंकार नही किया जा सकता।
39- क़ियामत में शुहूद व गवाह
39. क़ियामत में शुहूद व गवाह37. मौत का बाद का अजीब आलम
12
13
14
15
16
17
18
19
20
Lotus
Mitra
Nazanin
Titr
Tahoma