दफ़न के अहकाम 574-587

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तौज़ीहुल मसाएल
दफ़्न के मुसतहिब्बात 588- 593मुर्दे की नमाज़ मे कुछ चीज़े मुसतहिब हैः 573
मसअला 574. शव के इस प्रकार दफ़न करे कि उसकी बदबू बाहर नही जाने पाए और जानवर भी वहां तक नही पहुंच सकें, अगर ख़तरा हो कि कोई जानवर शव को हानि पहुंचाएगा तो क़ब्र को पक्की बनाएं।
मसअला 575. अगर शव को ज़मीन में दफ़न करना संभव नही हो तो वाजिब है कि उस को किसी स्थान पर ताबूत में रख कर चारों तरफ़ से बंद कर दें।
मसअला 576. दफ़न करते समय शव को क़ब्र में दाहिनी करवट इस प्रकार लिटाएं कि क़िब्ले की तरफ़ चेहरा हो।
मसअला 577. अगर कोई व्यक्ति नाव में मर जाए और उसके बदन के क्षतिग्रस्त होने का डर नही हो और नाव में रखने में कोई चीज़ रुकावट नही बन रही हो तो ठहरे रहे और तट पर पहुंच कर उसको दफ़्न करे। अन्यथा ग़ुस्ल, हुनूत और कफ़न देकर नमाज़ पढ़ कर किसी ऐसी चीज़ में रखकर उसका मुंह अच्छी प्रकार से बंद कर दें जिसके कारण पानी के जानवर उस तक नही पहुंच सकें और उसको समुद्र में डाल दें और वाजिब है कि जहां तक संभव हो उसे उस स्थान पर डालें जहां वह फ़ौरन दरियाई जानवरों का खाना न बन जाए।
मसअला 578. अगर ख़तरा हो कि दुश्मन क़ब्र खोदकर शव को बाहर निकाल लेगा या उसको हानि पहुंचाएगा तो अगर संभव हो तो जिस प्रकार पहले वाले मसअले में बयान किया गया है उसी के अनुसार कार्य करते हुए उसको समुद्र में डाल दें।
मसअला 579. जहा पर आवश्यक हो तो क़ब्र को पक्की करने का ख़र्च और इसी प्रकार दरिया एवं समुद्र में फेंकने का ख़र्च मुर्दे की सम्पत्ति से लिया जाएगा।
मसअला 580. अगर काफ़िर औरत मर जाए और उसके पेट में बच्चा भी मर जाए और उस बच्चे का बाप मुसलमान हो तो औरत को क़ब्र में बाईं करवट लिटाया जाए ताकि बच्चे का चेहरा क़िब्ले की तरफ़ रहे, बल्कि अगर अभी बच्चे के अंदर जान भी नही पड़ी हो तब भी, यानि अबी बच्चे में जान भी पैदा नही हुई हो तब भी एहतियात के अनुसार इसी नियम का पालन करें।
मसअला 581. ग़ैर मुसलमानों के क़ब्रिस्तान में मुसलमान का दफ़्न करना और मुसलमानों के क़ब्रिस्तान में काफ़िर को दफ़्न करना एहतियाते वाजिब के अनुसार जाएज़ नही है, इसी प्रकार मुसलमान को उस स्थान पर दफ़्न करना जहां उसका अपमान हो हराम है, जैसे उस स्थान पर दफ़्न करना जहां कूड़ा डाला जाता है।
मसअला 582. शव को ग़स्बी स्थान पर दफ़्न नही करना चाहिए और ना ही उस स्थानों पर करना चाहिए जो दफ़्न के लिए वक़्फ़ नही हैं, जैसे मस्जिदें, मदरसे, लेकिन अगर आरम्भ से ही दफ़्न के लिए एक विषेश स्थान चुन लें और वक़्फ़ में उसको अलग रखें तो वहां दफ़न करना जाएज़ है।
मसअला 583. दूसरे मुर्दे की क़ब्र में शब को दफ़्न करना जबकि क़ब्र को खोदने का कारण नही बन रहा हो, यानि पहले वाले मुर्दे का बदन दिखाई नही देने पाए और ज़मीन भी मुबाह या सार्वजनिक तौर पर वक़्फ़ हो तो जाएज़ है।
मसअला 584. एहतियाते वाजिब के अनुसार शव की जो चीज़े अलग हो जाएं चाहे वह बाल, नाख़ून, दांत हो उसको शव के साथ दफ़्न कर देन चाहिए लेकिन शर्त यह है कि क़ब्र को खोदने का कारण नही बने, लेकिन जो नाख़ून या दांत उसके जीवन में अलग हो जाए उसका शव के साथ दफ़्न करना वाजिब तो नही है लोकिन बेहतर है।
मसअला 585. अगर माँ के गर्भ में बच्चा मर जाए और उसका गर्भ मे रहना माँ के लिए ख़तरनाक हो तो जो सब से आसान रास्ता हो उससे उसको निकाल लें, यहां तक कि अगर विवश हों कि बच्चे के टुकड़े टुकड़े करना पड़े तो कर दें और इस कार्य में सब से पहला हक़ उसके पति का है कि वह इस कार्य को करे, लेकिन इस शर्त के साथ कि वह इस कार्य में माहिर हो और दूसरे नम्बर पर वह औरत है जो इस कार्य में माहिर हो, और अगर यह संभव नही हो तो जो महरम मर्द इस कार्म मे माहिर हों यह कार्य करें और अगर यह भी संभव नही हो तो विवशता में नामहरम जो इस कार्य में माहिर हो उससे सहायता ली जा सकती है।
मसअला 586. अगर कोई कूएं में मर जाए और उसका निकालना संभव नही हो तो कुएं को बंद कर दें और उसी कुएं को उसकी क़ब्र बना दें और अगर कुआं किसी और की सम्पत्ति हो तो किसी भी तरह से उसकी स्वीकृति ले।
मसअला 587. अगर माँ की मृत्यु हो जाए और पेट में बच्चा जीवित हो तो फ़ौरन उन लोगों के माध्यम से जिनके बारे में पहले बयान किया जा चुका है जिस तरफ़ से भी जीवित निकाल सकता हो निकाल लें फिर दोबारा उसके पेट को सिल दे और जहां तक संभव हो यह कार्य किसी इस कार्य के माहिर से कराया जाना चाहिए और अगर कोई माहिर व्यक्ति नही हो तो बाएं पहलू को चाक करके बच्चे को फ़ौरन बाहर निकाल लें।
दफ़्न के मुसतहिब्बात 588- 593मुर्दे की नमाज़ मे कुछ चीज़े मुसतहिब हैः 573
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